Book Title: Mahavira ka Antsthal
Author(s): Satyabhakta Swami
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 375
________________ महावीर का अन्तस्तळ [ ३४३ खाल निकालने की निरर्थक कोशिश करते हैं कि आश्चर्य होता हैं । अस्तु मैंने भी जैसे को तैसा उत्तर देदिया । मैंने कहा- I कोई पदार्थ चलमान तभी कहलाता है जब कि थोड़ा बहुत चल चुका हो । जो बिलकुल नहीं चला वह चलमान नहीं कहला सकता | इसलिये चलमान जितने अंश में चल चुका है उतने अंश में चलित कहलाया । इसलिये चलनान चलित भी है । नहीं तो वह चलमार्न नहीं कहला सकता । बेचारे अन्यतीर्थिक फिर निरुत्तर होगये । १०१ - जीव कर्तृत्व ११ जिन्नी ६४७० इ. स. अतीसवां चातुर्मास नालन्दा में बिताकर विदेह में विहार करता हुआ मिथिला आया । यहां गौतम ने एक प्रश्न का खुलासा कराया कि जगत् के सत्र कार्य कार्यकारण की परम्परा के अनुसार होते हैं फिर जीव पुण्यपाप कैसे करता है ? इसमें जीव का उत्तरदायित्व क्या है । गतवर्ष कालोदायी ने भी कुछ इसी ढंग का प्रश्न पूछा था । मैंने कहा - कार्यकारण की परम्परा में जीव का कर्तृत्व भी शामिल है । पर जड़ पदार्थों की अपेक्षा जीव में विशेषता हैं। जड़ पदार्थों में कारणत्व तो है पर कर्तृत्व नहीं । जीव की यह बड़ी भारी विशेषता है कि वह कर्ता है । उसमें ज्ञान इच्छा और प्रयत्न है । ज्ञान की कमी से तथा असंयमवृत्ति से जीव पाप करता हैं और पर्याप्त ज्ञान तथा संयम वृत्ति से जीव पुण्य, करता है । गौतम - पुण्य का फल सुख है और पाप का फल दुःख

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