Book Title: Mahavira ka Antsthal
Author(s): Satyabhakta Swami
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 358
________________ ३२६ ] महावीर का अन्तस्तल गौतम - कितना दुःखदाई तथ्य है यह । मैं- पर उतना ही अपेक्षणीय भी हैं। क्योंकि इस से सत्यविजय में कोई बाधा नहीं पड़ती । तीर्थंकर या क्रांतिकारी इन बातों की पर्वाह नहीं करता । www.vr गोतम भंते, आपके द्वारा होनेवाली सत्यविजय को जगत् देखे या न देखे पर मैं तो आपकी विजय को देख रहा हूं और अपना जीवन सफल बना रहा हूं । इतने में आई प्रियदर्शना । उसके पैर धुलधूसरित थे । वह कई कोस चलकर आई हो इस प्रकार थकी हुई मालूम होती श्री । आते ही वह पैरोंपर गिरकर बोली- क्षमा कीजिये प्रभु मुझको, दुर्भाग्य से में मिथ्यात्व के चक्कर में पड़गई थी, पर श्रावक शिरोमणि ढंक ने मेरी भूल दूर करदी | गौतमने आश्चर्य से पूछा- ढंक ने ? यह क्या बात है - आये ! सुदर्शना आज सवेरे मेरी साड़ी में आग लगगई । देखते ही मैं चिल्लाई- मेरी साड़ी जलगई । तब ढंक श्रावक ने कहा -- आये अपने सिद्धांत के अनुसार झूठ क्यों बोल रही हो । साड़ी जली कहां है जलरही हैं। क्रियमाण को कृत कहने से आपको मिथ्यात्व का दूषण लग जायगा | टंक की बात सुनकर मैं स्तब्ध होगई । लोचने लगीजिस सिद्धान्त का और जिस भाषा का मैं जानमें अनजान में दिनरात व्यवहार करती है उसी का विरोध करके मैं गुरु द्रोहिणी बनी ? इस विचार से पश्चात्ताप से मेरा हृदय जलने लगा और उसे शांत करने के लिये मैं दौड़ी चली आरही हूं । गौतम ढंक का ग्राम तो यहांसे दो योजन से भी अधिक दूर है | आजही चलकर आप आग ! क्या गोचरी नहीं ली ? ܐ

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