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महावीर का अन्तस्तल
चैत्य में ही होजायगा।
यह बात मेरे प्रिय शिष्य सिंह मुनि के कान पर पड़गई। असके मन में विचार आया कि यदि यह बात सत्य होजाय तो संसार क्या कहेगा ? इस विचार से ही उसका दिल दहल झुठा और वह फूट फूट कर रोने लगा।
मन उसे समझाया कि मेरी मृत्यु अभी दूर है। तुम इसकी चिन्ता न करो। धैर्य रक्खो।
सिंहमुनि-कब तक धर्य रक्खू भगवन्, छः महीने होगये पर आपकी बीमारी नहीं जाती, न आप कोई औषध लेते हैं। आप औषध लीजिये, नहीं तो मैं अनशन करूंगा।
मैं-इस कारण से तुम्हें अनशन न करने दूंगा सिंह, मैं औपध लूंगा। जाओ रेवती के यहां एक विजीरा पाक है वह ले जाओ! असके लेने से मेरी बीमारी दूर होजायगी। सिंह वह पाक ले आया और मैंने वह पाक लिया है।
९१-प्रियदर्शना का पुनरागमन १४ धामा ६४१८ इ. सं.
गौतम को इघर बहुत दिनों से उदास देखता हूं। आज जब मेरे पास गौतम आये तब मैंने कहा-मैं बहुत दिनों से तुम्हें उदास देखता हूँ ! अब तो मेरा स्वास्थ्य भी सुधर रहा है। फिर उदासी का कारण क्या हैं ?
गौतम-भंते, जमालि का विद्रोह देखकर मेरा मन वेचैन रहता है और भार्या प्रियदर्शना ने भी जमाल का साथ दिया यह देखकर तो रोना आता है। संघ की अगर अभी से यह दुर्दशा होने लगेगी तो आगे न जाने क्या दुर्दशा होगी?
मैं सत्य के मार्ग में किसी की दुर्दशा नहीं होती गौतम, दुर्दशा उन्हीं की होती है जो सत्य से भ्रष्ट होते हैं ।