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महावीर का अन्तस्तल
मृगाक्षजी से मैंने पूछा कि आप इसका उत्तर दें तो उनने कहा कि ऐसा उत्तर तो कलतक मिल सकेगा। पर रात में उनने कुलकर के बेटे की हत्या करदी । और दूसरे दिन न्यायसभा में आकर कहा कि मैंने कुलकर के तर्क का उत्तर दिया है। क्योंकि कुलकर नित्यवादी है, ये किसी वस्तु का नाश नहीं मानते, इसलिये इन्हें सन्तोष रखना चाहिये कि इनके वेटे का नाश नहीं हुआ, और नाश हुआ है तो ये अपने पक्ष को छोड़दें, और मेरे द्वाग हुए पुत्रवध को मेरे पक्ष की युक्ति समझें।
मुझे वह मामला स्थगित करना पड़ा।
इसी तरह एक दूसरा मुकद्दमा भी है। इसमें वादी प्रभाकर देव शर्मा हैं जो अद्वतवादी हैं प्रतिवादी है आचार्य कालिक, जो एक ऐतवादी पण्डित हैं । कौलिक ने अद्वैतवाद की निःसारता यताने के लिये प्रभाकर की पत्नी के साथ व्यभिचार किया। और कहा कि यादि अद्वत सत्य है तो स्वपत्नी पर पत्नी का भेद क्यों ? इसके उत्तर में प्रभाकर देव ने कौलिक का सिर फोड़ दिया और कहा कि द्वैतवाद के अनुसार शरीर और आत्मा जुदे जुदे तत्व हैं, इसलिये सिर फोड़ने से कौलिक की कुछ भी हानि नहीं हुई है।
आखिर मुझे यह मुकदमा भी स्थगित करना पड़ा है। समझ में नहीं आता कि इन लोगों को कैसे ठिकाने लगाया जाय, और नीति की रक्षा कैसे की जाय? .
श्रेणिक की यह किंकर्तव्यविमूढ़ता देखकर मैंने कहा-यदि चेचारा पंडित अपने एकान्त पक्षपर इसीप्रकार दृढ़ हैं और उसे व्यवहार में भी लाते हैं तब आप उन्हें न्यायोचित दण्ड दें। यदि वे अपने सिद्धांत में इसी प्रकार दृढ़ हैं तब उन्हें मृत्युदण्ड भोगने में भी आपत्ति न होना चाहिये । क्योंकि मृत्युदण्ड पाने पर भी कुलकर की नित्यता में कोई अन्तर न आयगा, और मृगाक्ष तो क्षणिक