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महावीर का अन्तस्तक
[२६७ .............. मिला है, तुम चाहो तो इस श्रद्धा को पासकते हो। ... पर श्रद्धा के बाद भी उससे आगे बढ़ना चाहिये, अर्थात् संयम का पालन करना चाहिये । पहिली तीनों बातों की मनुष्यत्व, सत्यश्रवण सत्यश्रद्धा-की सार्थकता संयम से ही है। यहीं वास्तव में धर्म है । सारी शाक्ति इसी संयम में लगाना चाहिये।
मुख्य संयम पांच हैं। हर तरह की हिंसा का हर तरह त्याग । मनसे बचन से काय से न हिंसा की जाय, न कराई जाय, न उसका अनुमोदन किया जाय।
. २-झूठवचन का त्याग । दृसरों का अकल्याण करने वाले वचन न बोलना, न बुलवाना, न अनुमोदन करना । ..
३-मन से वचन और काय से न परधन का हरण करना, न कराना, न अनुमोदन करना।
४-मन से वचन से कार्य से ब्रह्मचर्य का पालन करना । ब्रह्मचर्यभंग न खुद करना, न कराना, न अनुमोदन करना। .
५-मनवचन काय से परिग्रह का त्याग करना । धनधान्यादि परिग्रह न रखना, न रखाना, न रखने का अनुमोदन . करना ।
- इन पांच पापों का पूर्ण त्याग करने से मनुष्य का अद्धार होता है, उसे मोक्ष मिलता है, साथ ही जगत् को भी सुख शांति मिलती है। .
इन पांच महाव्रतों के पालन के लिये उच्च श्रेणी के त्याग की जरूरत है, इनका अच्छी तरह पालन श्रमण श्रंमणी ही कर सकते हैं । गृहस्थाश्रम में इनका पालन कठिन है, वर्तमान द्रव्य क्षेत्र कालभाव के अनुसार घर में रहकर कोई अपवाद भए में ही इनका पालन कर सकता है। पर गृहस्थं लोग श्रमणो. पासक बनकर अणुव्रत के रंग में इनका पालन कर सकते हैं। के चलते फिरते. जीवों की हिंसा का त्याग कर अहिंसाणुव्रत का