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जितनी देर तक छिपा बैठा रहेगा उतने समय तक वह गुणाकार रूप में बढ़ता जायगा, और पाप बढ़ाता जायगा । मेरी भूल से आनन्द के मन में जो खेद हुआ है उसको जितन अधिक समय तक बना रहने ढुंगा, मेरा अपराध उतना ही बढ़ता जायगा ! इसलिये आज्ञा दीजिये भगवन, मैं शीघ्र क्षमायाचना कर आऊं ! मैं- जिसमें तुम्हें सुख हो वही करो ।
गौतम गये और क्षमायाचना कर आये। मुझे इससे परम सन्तोष हुआ । सोचता हूं कि मेरे संघ का भवन संयम न्याय विनय की नीव पर खड़ा होरहा है ।
महावीर का अन्तस्तल
आनन्द एक श्रावक है, और गौतम एक साधु हो नहीं हैं किन्तु मेरे वाद संघ में उन्हों का स्थान सर्वश्रेष्ठ है | आनन्द की अपेक्षा गौतम का स्थान काफी ऊंचा है कई गुणा ऊंचा है । फिर भी इतने बड़े गणनायक को एक गृहस्थ के घर जाकर क्षमा याचना करने में संकोच नहीं हुआ यह संघ के लिये शांभा की ही बात नहीं है किन्तु जीवन को भी बात है ।
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इस विषय में मेरा क्या दृष्टिकोण है इसका पता लगते हो गौतम ने बिना किसी संकोच के बिना किसी टालमट्रल के. तुरंत ही पालन किया, यह अनुशासन भी संघ के जीवन को स्वस्थ बनाने वाला है उम्र में मुझमे आठ वर्ष अधिक होने पर भी गौतम की यह नम्रता, यह विनय भक्ति यह अनुशासनप्रियता, इतनी अमूल्य है कि इस संघ का प्राण कह दिया जाय तो अतिशयोक्ति न होगी ।
७७ - स्वाभिमानां शालिभद्र
२४ ईगा ९४४७ ३. सं.
गतवर्ष वाणिज्य ग्राम से निकलकर अनेक नगर ग्रामों