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महावीर का अन्तस्तल
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विद्वत्ता के बलपर सत्य को चारों ओर फैलाने में अधिक से अधिक सहयोग दिया है। फिर उनसा त्याग भी कितना महान ई ! वे लोग सैकड़ों शिष्यों के गुरु थे, और अधिकांश तो उन्न में भी सुझसे ज्यादा है। इन्द्रभूति मुझसे क्य में आठ वर्ष अधिक है, दूसरे भी अनेक गणधर उम्र में मुझसे बड़े हैं फिर भी भरने को मेरा पुत्र समझते हैं, यह त्याग कितना असाधारण है। इस त्याग के आने राजानों के त्याग का क्या मूल्य है ?
. रात में मेघ कुमार की बडबडाहट मेरे कान में पड़ी थी। वर कल ही दीक्षित हुआ है इसलिये दीक्षापर्याय में सर से छोटा है इसलिये उसका स्थान भी अन्त में रहा, रात में उसका संथारा सब के अन्त में था। रात में पेशाव वगैरह को हर एक साधु उसके पास से गुजरता था, एक का तो पैर भी उसके पैर में लगगया । साधु को पश्चाताप हुआ, पर मेघ कुमार का इससे सन्तोष नहीं हुभा। वह राजकुमार था, इस तरह का अपमान उलने कभी सदा नहीं था। इसलिये अस्पष्ट शब्दों में उसने अपना असंतोष व्यक्त किया। ..
पर मैं नहीं चाहता था कि मेधकुमार दीक्षा लेकर पक ही दिन में चला जाय । इससे मेघकुमार का जीवन ही कलंकित न होजाता लाथ ही संघ की भी मप्रभावना होती तथा दूसरे राजकुमार भी झिझकते।
इसालये मैंने रात में ही निर्णय किया कि जब मेघकपार मेरे सामने असन्तोष व्यक्त करेगा, तब मैं उसकी भनोवैज्ञानिक चिकित्सा करके उसे संयम में दृढ़ करूंगा। इससे उसका भी कल्याण होगा बार जगत का भी कल्याण होगा। : ।
प्रातःकाल जल्दी से जल्दी मेघकुमार मेरे पास आया। प्रणाम करके नीचा सिर करके बैठ गया।