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महावीर का अन्तस्तल
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- जगत् इस दिशा में जितना आगे बढ़ेगा जगत् को सच्चे सेवको का, ज्ञानियों तपस्वियों और त्यागियों का उतना ही अधिक लाभ होगा। साथ ही धन वैभव अधिकार की महत्ता कम होने से इनकी तरफ जनता का झुकाव भी कम होगा। इस प्रकार पाप का बीज भी निर्मूल होने लगेगा।
जगत् में धन वैभव कम हो यह दुःख की बात नहीं है पर वीतरागता विवक त्याग तप आदि कम हो यही दुख की बात है। मैं ऐसे तीर्थ की रचना करना चाहता हूँ जिसमें पद पद पर तप त्याग की और ज्ञान की महिमा दिखाई दे ।
६२-निमित्त और उपादान ८चन्नी ६४४२ इ.सं.
सुसुमार पुर से भ्रमण करता हुआ मैं भोगपुर आया। वहां एक महिन्द्र नामका क्षत्रिय मुझे देखते ही भड़क उठा। और बकझक करता हुआ खजूर की टहनी लेकर मुझे माग्ने दौड़ा, परन्तु सनत्कुमार नाम के एक दूसरे क्षत्रियने, जो उस गांव का अधिपति था, असे रोका।
वहां से भ्रमण करता हुआ मैं नंदीग्राम आया, यहां के अधिपति ने मेरा खूब आदर सत्कार किया। .. यहां से मैं मेढक गांव आया । यहां एक ग्वाला मुझे रस्सी लेकर मारने दौड़ा, यहां भी गांव के एक मुखिया ने देखलिया और उसे रोका।
___इन घटनाओं से पता लगता है कि श्रमण विरोधी वातावरण अभी भी काफी है। फिर भी उसमें इतना सुधार होगया है कि अव श्रमणों का पक्ष लेनेवाले भी काफी लोग होगये हैं।
इन घटनाओं से मेरे मन में एक विचार बार बार आता