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महावीर वा अन्तस्तल
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. बोले-यद्यपि हम लोग जगत के मायामोह से अलग है, फिर भी आँखें बन्द करके नहीं बैठते । जगत को देखते हैं कि वह सुधरे । इस समय समाज की बड़ी दुर्दशा है, ज्ञान विज्ञान सब " नष्ट होरहा है , शास्त्र तो वस अन्धश्रद्धापूर्ण क्रियाकांड की जानकारी में समाप्त होगये हैं। समाज का एक वर्ग इस तरह पदद. . लित किया जारहा है मानो वह मनुष्य ही नहीं हे, कदाचित् पशु ... से भी गई वीती उसकी दशा है । यज्ञ के नाम पर हत्याकांड इतने बढ़गये हैं कि यातायात के लिये अश्व और कृषि के लिये बलीवर्द भी नहीं मिलते | कृषक वर्ग तड़प रहा है, शुद्ध वर्ग पिन रहा है, पर कोई सुननेवाला नहीं है । जिनके पास वैभव है उन्हें स्वर्ग में अप्सराओं को नियंत कर लेने की चिन्ता है। उर्वशी और तिलो- ... त्तमा पर सव की अष्टि हैं। पर इससे समाज का बहुभाग कंगाल बनता जारहा है इसकी तरफ किम्ली की दृष्टि नहीं है।
मैं-तब आप अपने यहां के शासकों से यह वात क्यों नहीं कहत?
वे-कहने का क्या अर्थ ? शासक तो दो बाते ही जानते हैं-युद्ध और विलास । वाकी और सब बातें समझने का ठेका उनने ब्राह्मणों को दे दिया है।
मैं-तो ब्राह्मणों से ही कहिये। - वेब्राह्मणों से कहने का भी कुछ अर्थ नहीं है। क्योंकि लोगों के अन्धविश्वास तथा बेकार के इन क्रियाकांडों पर ही . , ब्राह्मणों की जीविका निर्भर है। और इस जीविका को व्यवस्थित रखने के लिये जिस बड़प्पन की जरूरत है, वह जन्म से जाति. मानने से तथा दूसरों को नीचा दिखाने से ही मिल सकता है, समाज की दुर्दशा पर ही जिनके स्वार्थ टिके हैं, वे दुर्दशा को क्या दूर कर पायंगे ? और क्यों करेंगे?