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महावी। का अन्तम्तल
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वेदना थी ! मुझसे यह सब न देखा गया। मैंने अपना उत्तरीय निकालकर उसके दो टुकड़े किये और एक टुकड़ा ब्राह्मण को देकर कहा-इस समय और कुछ तो मेरे पास है नहीं, यह आधा कपड़ा ले जाओ ! बहुमूल्य है यह, इसके विक्रय से अनेक दीनारें मिल जायँगी
ब्राम्हण की आंखें चमक उठी, मुग्ध मण्डल पर हँसी लहलहाने लगी । बाला-मैने तो कहा था कि तुम हमारे लिए अभी भी राजकुमार हो कुमार ! तुमने मुझे संकट से बचा लिया कुमार, ब्राह्मणो तुम्हें भूरि भूरि आशीर्वाद देगी।
" मैं-अकेली ब्राह्मणी के आशीर्वाद से काम न चलेगा काका, तुम भी आशीर्वाद देते जाता, नहीं तो तुम्हारा आशीर्वाद यदि झुधार रहगया तो फिर क्या देकर मैं उसकी भरपाई करूंगा।
ब्राह्मण ने अट्टहास्य किया। और यह कहते कहते चला गया कि तुम तो मेरे लिए अब भी राजकुमार हो कुमार। /
१९-पारिपाचक एक बाधा ६सत्येशा ९४३२ इ. सं.
कल सूर्यास्त होते तक जितना दूर चला जासकता था उतना चला । कूार गांव के पास आपहुँचा । वस्ती में जाने की इच्छा नहीं थी । आज तक वस्ती में रहते रहते ऊब गया था, इसलिये वस्ती के बाहर अटवी के किनारे ही रात विताना तय किया। रात भर हृदय में विचारों का तूफान सा आता रहा। यह बात वार वार ध्यान में आई कि एक राजकुमार की हसियत से नहीं, किन्तु साधारण जन की हसियत से जगत के सामने अपने को उपस्थित करूं ? क्योंकि इसके बिना मेरा जीवन साधारण जन को अनुकरणीय नहीं बन सकता। लोग अपनी
चला जार
पास आप
आज
सलिये व
उपस्थित कम जन की हासिक राजकुमार काता रहा