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महावीर का अन्तस्तल
भी होना चाहिये ! हितकर होनेपर अतथ्य भी सत्य होजाता है । और अहितकर होन पर तथ्य भी असत्य होजाता है ।
गोशाल चुप रहा ।
मैंने सोचा कि जब मैं आत्मविकास की श्रेणियाँ या गुणस्थान निश्चित करूंगा तब इस बात का ध्यान रक्खूंगा । अतथ्य तो जीवन के अन्त तक रहे पर असत्य का त्याग जल्दी होना चाहिये ।
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४६ - पांचव्रत
२२ मुंका ६४३६ इतिहास संवत्
राजगृह नगर में मेरा अठवां चातुर्मास पूरा हुआ । राजगृह बहुत समृद्ध नगर है । नगर की ऊपरी चमक भी देखी और भीतरी कालिमा भी एक तरफ अटूट सम्पत्ति है तो दूसरी तरफ दयनीय अभाव । ऐसा मालूम होता है कि सम्पत्ति एक तरफ सिमिटकर इकट्ठी होगई है और दूसरी तरफ सूखा सा पड़गया है । अगर यह सिमिटी हुई सम्पत्ति वटजाय तो अभावग्रस्त लोगों को इसप्रकार दयनीय अवस्था का अनुभव न करना पड़े | इसलिये यह आवश्यक मालूम होता है कि अपरिग्रह पर पूरा जोर दिया जाय | आज तक साधुओं के लिये अपरिग्रह पर जोर दिया जाता रहा है । वास्तव में वह उचित है । पर केवल इतने से ही समाज की आर्थिक समस्या हल नहीं होसकती । जब तक गृहस्थ भी इस विषय का पालन न करेंगे तब तक केवल साधुओं के पालन से काम नहीं चल सकता | इससे मैंने तय किया है कि साधुओं के लिये जो व्रत बनाये जायँ उनका आंशिक पालन गृहस्थों के लिये भी आवश्यक ठहराया जाय । साधुओं का व्रत महाव्रत हो तो गृहस्थों का व्रत अणुव्रत, पर व्रत हो अवश्य । अपरिग्रह महाव्रत और अपरिग्रह अणुव्रत इस प्रकार व्रत की दो श्रेणियाँ होना चाहिये ।