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महावीर का अन्तस्तल
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नाविक सिसक सिसक कर आंखें पोछने लगे ?
चित्र ने क्रोध में कहा-तुम लोग हाथ पैर बांधकर इसी नदी में हुवा देने लायक हो।
मैंने कहा-इन्हें क्षमा करो चित्र, एक तो इनने मुझे पहिचाना नहीं, दूसरे ये लोग यहां साधुसेवा के नहीं, जीविका के लिये बैठे हैं।
चित्र-पर आपको उतार देने से इनकी जीविका में ऐसी क्या कमी जाती ? बल्कि इन गधों की लांत पीढ़ियाँ तर जाती।
मैं-मृत पीढ़ियाँ तो अपने अपने पुण्य पाप से जहां जाने योग्य होंगीं चली गई होगी। अब तुम इन्हें क्षमा कर दो जिससे कम से कम इनकी पीढ़ी तो तर जाय ?' _ चित्र-मैं आपकी आज्ञा से इन्हें क्षमा कर देता हूँ, नहीं तो इन्हें ठिकाने लगा देता।। - इसके बाद चित्र मुझे बार बार नमस्कार करके और नाविको को डांटता घुड़कता हुआ नाव में सवार होकर चला. गया । जब तक चित्र रवाना न हुआ तब तक मैं घाट पर ही रहा। क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि मेरे चले जाने के बाद मेरे कारण चित्र उन नाविकों को सताये ?... ,
नाविकों ने फिर वार बार क्षमा मांगी। मैंने कहा-इसमें तुम्हारा कोई अपराध ही नहीं हैं और मेरे मन में तुम्हारे प्रति कोई रोप नहीं है तव में क्षमा कर तो क्या करूं' फिर भी मैं तुम्हारा बुरा नहीं चाहता। इसीलिये जब तक चित्र यहां से नहीं गया तब तक में रुका रहा । मैं नहीं चाहता था कि मेरे जाने पर वह तुम्हें सताये।
नाविकों ने गद्गदस्वर में मेरी प्रशंसा करते हुए मुझे बार बार प्रणाम किया।