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महावीर का अन्तस्तल .
शारीरिक परियों को जीतने में असली काम तो मन को ही
करना पड़ता है |
मैं समझता था कि शारीरिक परिषहें ये दस ही पर्याप्त हैं पर आज गोशाल को जो कांटा लगा उससे गोशाल तड़प गया । मैंने जब धीरज रखने को कहा तो कहने लगा- मैं बीमारी से नहीं डरता, डांस मच्छर से भी नहीं डरता, पर कांटा तो वस कांटा ही है । मैंने किसी तरह उसका कांटा निकाल दिया । पर बाद में यह सोचा कि कांटा कंकड़ घास तृण आदि की भी एक परिपह है जिसमें धीरज रखने की जरूरत है । इस प्रकार शरीर से सम्बन्ध रखने वाली ग्यारह परिपडें मैंने निश्चित की है । इन्हें शरीर प्रधान परिपहें कहना चाहिये ।
कुछ परिप मनप्रधान है । म्लेच्छ देशों में मुझे नग्न देखकर बच्चे चिढ़ाते थे हँसते थे । इससे मुझे शारीरिक क्लेश तो था नहीं, सिर्फ मन को कट होता था, पर मैं उपेक्षाभाव से सब सहन करता था । नग्नता एक उपलक्षण है, लंगोटी लगाने पर भी लोग हँसी उड़ा सकते हैं. मैले कुचले कपड़े पहनने पर या चिन्दियाँ पहिनने पर भी लोग हँसी उड़ा सकते हैं यह भी एक तरह की नग्नता ही है, इससे डरना न चाहिये। अगर हम यह सोचलें कि आज गरीबी के कारण अधिकांश आदमी नंगे या नंगे के समान बनकर रहते हैं ऐसी अवस्था में उनका हिस्सा हम क्यों लें ? तो हमें नग्नता न खटकेंगी । आज अन्न इतना दुर्लभ नहीं है जितना वस्त्र दुर्लभ है । इसलिये उपवास करने की अपेक्षा नग्नता अधिक आवश्यक है । फिर नग्नता में कोई शारीरिक कष्ट की समस्या नहीं है सिर्फ मन को जीतने की समस्या है | हां ! अगर कभी कोई ऐसा युग आये जिसमें अन्न कम और वस्त्र अधिक होजायँ तब इस बात पर जुस परिस्थिति के अनुसार विचार करना पड़ेगा । पर अभी तो नग्न परिषद्द विजय की आवश्यकता है ।
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