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महावीर का अन्तस्तल
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राजकुमारों ने कहा-' जिस सौंदर्य में ऐसी दुर्गन्ध भरी हो उस सौंदर्य के पास कैसे जाया जा सकता है।'
मल्लिदेवी बोली-तो क्या आप समझते हैं कि मल्लि की मूर्ति के भीतर ही दुर्गन्ध है मल्लि के शरीर के भीतर दुर्गन्ध नहीं है ? मूर्ति तो पवित्र धातु की है जबकि यह शरीर हाइ, मांस, खुन आदि अपवित्र धातुओं से बना है । शरीर के भीतर जैसी चीजें डाली जाती हैं उससे भी अधिक सुगन्धित चीजें इस मूर्ति के भीतर डाली गयी है । फिर भी जब आप लोग मूर्ति के सौंदर्य से दूर भागते हैं तव इस मल्लि के सौंदर्य से चिपटने की कोशिश क्यों करते हैं ? यह तो मूर्ति से भी अधिक दुगंधित और अपवित्र है।
मालदेवी की चतुराई काम कर गयी । राजकुमार । अत्यन्त लज्जित हुए और उनने मल्लि के चरणों पर सिर झुका दिया। इसके बाद मल्लि ने गृहत्याग किया, धार्मिक और सामाजिक सुधार के लिये प्रयत्न किया और इन चारों राजकुमारों ने उनके सहयोगी या शिष्य वनकर उनका साथ दिया । और वह इतनी लोक पूज्य हुई कि आज मैं उनका यह मन्दिर बना हुआ देखता हूँ।
.. नारियों को तीर्थ-प्रचार के कार्य में लगाने के लिये मल्लिदेवीका उदाहरण एक अच्छा नमूना है। नारियों में उत्साह
भरने के लिये मैं अपने तीर्थ में मल्लिदेवी की कथा को अच्छा . स्थान दूंगा। नर और नारी दोनों ही आत्मोत्कर्ष के क्षेत्र में ऊंचे
से ऊंचे जासकते हैं इसका यह सुन्दर उदाहरण होगा और यक्ष
मन्दिरों की अपेक्षा इस प्रकार के आदर्श व्यक्तियों के मन्दिर . जनता के लिये हजार गुणे कल्याणकारी होंगे । यक्ष मन्दिरों में
जो आतंक पूजा का दोष है वह इनमें नहीं होगा।