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महावीर का अन्तस्तल
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दयनीय है उसपर अनुकम्पा ही करना चाहिये।
अल्पदर्शन अदर्शन या कुदर्शन से ही चित्त चलायमान होता है पर सम्यग्दर्शन से वह स्थिर हो जाता है । चार महीने में सुने इस बात क काफी अनुभव हुए । अदर्शन परिपह विजय पर मुझे काफी विचार सामत्री मिली।
२३-तापसाश्रम में ६६वुधी २४३२ इ. सं.
आज दुइजनक तापलों के आश्रम के बाहर एक वृक्ष के नीचे बैठा था कि तापसों के कुलपति अपनी शिप्य मण्डली के साथ वहां से निकले । मुझे भी एक तापस समझकर मेरे पास भी आये । कुलपति वृद्ध थे इसलिये मैंने उठकर और हाथ जोड़कर उनका सन्मान किया । उनन परिचय पूछा | परिचय मिटने . पर इकदम हर्षित होकर बोले-तुम तो मेरे भतीजे हो। राजा सिद्धार्थ मेरे मित्र थे । वे कई बार इस आश्रम में आये हैं और आश्रम को भेंट भी देते रहे हैं । तुम इस आश्रम को अपना घर ही समझो और यहीं रहो ।
मैंने कहा-अभी तो मेरी इच्छा पर्यटन करने की ही है।
बोले-कोई बात नहीं, इच्छानुसार पर्यटन करो ! पर चतुर्मास में तो एक जगह रहना होगा। इस वर्ष का बर्यावास यहीं आकर विताना ।
___ मैंने कहा-यह ठीक है। १४ इंगा ९४३२ इ. सं.
ग्रीष्म ऋतु भर इधर सुधर विहार करके में तापसाश्रम में आगया । कुलपति ने घाम की एक झोपड़ी रहने को दे दी। पर आज उस झोपही को गायों ने चरलिया।