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महावी। का अन्तम्तल
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तुम्हारे यहां प्रभु भिक्षा न लेंगे। तब वे लोग क्षमा मांगकर भोजन के लिये आग्रह करने लगे ! पर मैंने मिक्षा नहीं ली।
मैं अपने तर्थि में साधुओं के लिये नियम कर दूंगा। कि कोई भी साधु सदाव्रत में भोजन न ले ।
मेरे सदावत में भोजन न लेने से श्रमणों के बारे में इस गांव का वातावरण अच्छा ही हुआ।
६-सत्येशा ९४३७ इ. सं.
तुम्बाक गांव में आया यहां एक मर्मभेदी समाचार सना। पार्श्वनाथ की सम्प्रदाय के मुनिचन्द्राचाय नामक श्रमण को रातमें आरक्षका ने मार डाला | सुनते हैं ब्राह्मणों की इनपर वहुन दिनों से तीखी दृष्टि थी । आरक्षकों को उनने षड्यंत्र में शामिल किया . और तब उतने रातमें चोर के बहाने उन्हें मार डाला । पर श्रमणों के बारेमें इसका परिणाम अच्छा ही हुआ । इस निरपराध हत्या से सारा गांव श्रमणभक्त बनगया। मुनि की अंत्येष्टि क्रिया में सारा गांव शामिल हुआ और वातावरण ब्राह्मणों के प्रतिकूल और श्रमणों के अनुकूल होगया। मैंने भी पार्खापत्यों क त्याग आदि के बारे में लोगों से चर्चा की और श्रमणों की प्रशंसा की।
१९-सत्येशा ६४३७ इ. सं
कपिका ग्राम में हम दोनों को आरक्षकों ने खूब सताया। इतने में दो परिव्राजिकाएँ वहां से निकली । उनने देखा कि दो श्रमण सताये जारहे है। मेरी निर्भयता निश्चलता देखकर उनपर बहुत असर पड़ा और उनने मेरी वन्दना की। आरक्षकों को डर लगा कि सम्भवतः लोकमत उनके विरुद्ध होजायगा इसलिये उनने हमें छोड़ दिया।
पर इन संकटों को देखकर गोशाल घबरा गया। इसलिये जब मैं विशालापुरी की तरफ जा रहा था तब एकत्रिक पर