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महावार का अन्तस्तल
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इन्द्रियाँ तो प्रत्येक के हैं । एक तो स्पर्श का ज्ञान दूसरे स्वाद. का ज्ञान । माड़ों में मुझे स्वाद का ज्ञान नहीं मालूम हुआ फिर भी स्पर्श का ज्ञान अवश्य है । स्पर्शन इन्द्रिय एक मूल और व्यापक इन्द्रिय है जो हरएक प्राणी के पाई जाती है । पर लट वगैरह के गन्ध का ज्ञान नहीं दिखाई दिया, इसलिये इन्हें द्वीन्द्रिय ठहराया। चिन्टियाँ जिस तरह अन्धेरे में चलती हैं उससे मालूम होता है कि इन्हें अँधेरा उजेला एक सरीखा है पर . गंधज्ञान इनका बहुत तीव्र है । इसलिये इन्हें तीन इन्द्रिय, पतंग आदि को चार इन्द्रिय कहना चाहिये ।
. एक तरह से यह अच्छा ही हुआ कि चौमासे के प्रारम्भ में ही गोशाल लौट आया था। छः महीना इधर उधर भटककर ' और लोगों के द्वारा काफी सताया जानेपर वह फिर आगया। मैं समझता हूँ कि वह टिकेगा नहीं, क्योंकि इसकी दृष्टि लोगों . से विशेषतः अशिक्षित लोगों से पूजा वसूल करने की है। वह अवसर ढुंद रहा है कि गमारों का परमगुरु बनजाऊं। अच्छे हों या बुरे, पक्के हों या कच्चे, जहां जहां में जाऊं वहां वहां गवारों की भीड़ जरूर पहुँचे । सम्भवतः वह यह भी सोचता है कि जव गमारों की भीड़ मेरे पीछे होजायगी तव गमारों की भीड़ से अपना स्वार्थ सिद्ध करने वाले कुछ शिक्षित लोग भी मेरा मुँह ताकने लगेंगे । वह समाज को सुधारना नहीं चाहता; केवल बातों से, संगीत से, नृत्य में लोगों को रिझाकर आकर्षण का ..पूजा का सुख लूटना चाहता है । इस चातुर्मास में झुसकी इस मनोवृत्ति का सूक्ष्म परिचय मिला है। पर कभी न कभी यह पल्लवित होगी। ... पर हो ! इसके लिये मैं क्या करूं ? ऐसे लोग पूरी सफ.लता तो पा नहीं सकते, केवल क्षेत्र को वश में कर पाते हैं पर काल को नहीं । ये कुछ समय के लिए बरसाती नालों की तरह