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महावीर का अन्तस्तल
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अच्छे अच्छे विद्वान भी श्रमणभक्त क्यों नहीं बन सकते ? अगर उनका सहयोग मुझे मिल जाय तो मैं अपने ज्ञान का प्रकाश चारों ओर अच्छी तरह फैला सकता हूँ 1 चन्दन का वृक्ष अपने में सुगन्ध पैदा कर सकता है पर झुसे फैलाने का काम तो वायु का ही है। ये ब्राह्मण वायु का कार्य कर सकते हैं । इनके पिता मेरा कार्य अधूरा ही रहेगा । अस्तु ! अभी तो मुझे और भी तपस्या करना है, अन्तिम ज्ञान प्राप्त करना है, श्रमण-विरोधी वातावरण को दूर हटाते हुए भ्रमण करना है, लोगों के हृदय पर अपनी तपस्या की छाप मारना है, इसके बाद जब मैं नये धर्मतीर्थ की स्थापना करूंगा तव सब से पहिले ऐसे विद्वान् ब्राह्मणों की खोज करूंगा जो मेरी इस सुगंध को फैलाये ।
आज की घटना का स्मरण मेरे हृदय में अल्लास भर रहा है। इतना ही नहीं, वह अशोक वृक्ष भी मेरे उल्लास का एक प्रतीक वन वेठा है।
५२- जीवसमास और अहिंसा ६धनी ९४३७ इ. सं.
इस भद्रकापुरी में मैंने अपना छट्टा चातुर्मास निरुपद्रव रीति से पूरा किया। श्रमणों के बारे में इस पुरी के लोगों के परिणाम बड़े भद्र है और मेरे यहां रहने से, मेरी निस्पृहता देखकर श्रमणों के विषय में इनके मनमें भक्ति पैदा होगई है।
यहीं मैंने अपनी ज्ञानसाधना का एक बड़ा भारी काम पूरा किया है, और वह है जीवसमासों का निर्माण । चातुर्मास में मैंने कीड़ों मकोड़ों पतंगों आदि का पर्याप्त निरीक्षण किया है। और इस बात का निश्चय किया कि किस जीव के. कितनी इन्द्रियाँ हैं । यह मैंने देखा कि चलते फिरते इन प्राणियों में दो