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महावीर का अन्तस्तल
गोशाल की कुचेष्टा बतलादी । लोगों ने यह दृश्य देखा तो श्रमणों का धिक्कार करने लगे और वालकों ने तो गोशाल को खूब मारा भी । कुछ लोग श्रमणों से सहानुभूति रखते थे उनने गोशाल को छुड़ाया तो जरूर, पर उनकी मुखाकृति से मालूम होता था कि उनके मनमें भी श्रमणों से घृणा सी पैदा हो रही है ।
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सभ्यता और शिष्टाचार भूलने का यह स्वाभाविक परि णाम था | इस घटना से उस गांव का वातावरण इतना श्रमणविरोधी होगया कि हम फिर उस गांव में ठहर न सके। खैर ! मेरा तो उपवास था पर भूखे गोशाल का चिहरा भूख से जितना उतर गया उतना मार और अपमान से भी नहीं उतरा था । इस दुर्घटना से गोशाल को कुछ सभ्यता का पाठ तो पढ़ना चाहिये पर ऐसा नहीं मालूम होता कि वह सभ्यता का पाठ पढ़ेगा ।
२७ चिंगा ६४३८
आज मर्दन ग्राम में आया और बलदेव के मन्दिर में ठहरा । कुंडक ग्राम की तरह गोशाल ने यहां भी बलदेव की मूर्त्ति का अपमान किया । और ग्रामवासियों ने मार-पीट की। कुंडक ग्राम की दुर्घटना से कुछ पाठ सीखने की अपेक्षा गोशाल मैं प्रतिक्रिया ही अधिक हुई। अब वह देवमूर्तियों के साथ साधारण ग्रामवासियों का उग्र विरोधी और अकारण द्वेषी होगया है । अब वह अकारण ही इनका अपमान करने को लालायित रहता है ।
पर मुझे उसकी यह बात बिलकुल पसन्द नहीं । क्योंकि इस तरीके से लोग कुदेव पूजा तो छोड़ेंगे नहीं, उल्टे श्रमण विरोधी बनकर श्रमणों की बात सुनना अस्वीकार कर देंगे । धार्मिक और सामाजिक क्रांन्ति के पथ में यह एक बड़ी भारी चाधा होगी ।