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महावीर का अन्तस्तल
wwwer लोगों में विषय लोलुपता, अद्दण्डता असहिष्णुता आदि दोष यहुत फैल हुए हैं। इन कारणों से लोगों ने मुझे काफी परेशान किया है। राजकुमार या या राजा बनकर मैं जीवनभर इस परेशानी का अनुभव न कर पाता, तब समाज की चिकित्सा भी क्या करता? आज मेरी पूजा प्रतिष्ठा बिलकुल नहीं है, लोग साधारण जन की तरह मेरे साथ व्यवहार करते हैं या मुझ में नो बाहरी असाधारणता देखते हैं उसे हंसने की, अपमान करने की या आलोचना की ही बात समझते हैं।
कई बार इस बात का विचार आया कि मैं राजकुमार की . अवस्था में क्या था और आज क्या हूं ? पर ऐसे विचारों को क्षणभर से अधिक मैंने ठहरने नहीं दिया । क्षणभर के लिये होने घाले इस अदर्शन या कुदर्शन को मैले सत्यदर्शन से जीता है। ...
साधकके लिये यह बड़ी भारी मानसिक बाधा है कि छोटे से छोटे व्याक्त झुप्सका अपमान कर जाते हैं और दम्भी नीच असंयमी सन्मानित होते रहते हैं। पर सच्चा साधक इन. अपमान के घूटों को विना मुंह विगाड़े पीजाता है, जगत की इस अंधेरशाही को हंसकर निकाल देता है। मूढ़ और नासमझ लोग अगर योग्य सन्मान नहीं करते या अपमान करते हैं तो इसमें अपने मन को छोटा करने की जरूरत नहीं है। . . . .
आज सवेरे की ही बात है, मेरे सामने गाय बैलों का. शुण्ड चला आरहा था। सब मस्तानी चाल से मेरे पास से ही नहीं मुझे घिसते हुए निकल गये किसी ने सुझे रास्ता देने की पर्वाह नहा की। पर ज्योंही एक सांड आया सबने मैदान साफ कर दिया । तब क्या मैं इसके लिये राऊंगा कि मेरा सन्मान एक सांड बराबर भी नहीं है ? जनता राजाओं का राजकुमारों का, दम्भी वाहन का सम्मान करती है और मुझे चार माह से परेशान कर रखा है इसकी मुझे चिन्ता नहीं है। जनता मूद है,