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महावीर का अन्तस्तल
भोजन कराते थे मेरी निस्पृहता के कारण भी इनकी अनु.
रक्ति थी ।
भोजन के विषय में भी मुझे लोगों के जीवन में क्रांति करना है । निर्दयता - पूर्ण मांस भोजन और उन्मादक मद्य । का भोजन में कोई स्थान न रहे ऐसी मेरी इच्छा है । मैं स्वयं इन वस्तुओं का उपयोग नहीं करता। यहां तक कि जिस भोजन में इनका मिश्रण हो वह भी नहीं लेता । आजकल इसप्रकार का निरुदिष्ट भोजन मिलना कठिन तो होता है पर एक दिन ऐसा अवश्य आयगा जब घर में ऐसा पवित्र भोजन मिलने लगेगा । इस चातुर्मास में उन श्रेष्ठियों के यहां पवित्र भोजन मिला इसलिये वारी वारी से मैं उन्ही के यहां गया। मेरे भोजन की पविता तथा मेरी निहता देखकर वे अत्यधिक आदर या अनुराग से भोजन कराते थें 1
मेरे विषय में आदर और अनुराग प्रगट करते हुए इन श्रेष्ठियों को देखा गोशाल ने, इसलिये यह भाई मेरे पास आकर रहने लगा । यह एक भिक्षुक का पुत्र है। इसके पिता का नाम है मंखली और माता का नाम है भद्रा । शरवन गांव की गोशालामै उसका जन्म हुआ था इसलिये इसका नाम गोशाल रक्खा
गया ।
मातापिता के साथ यह भी भिक्षा मांगा करता था। पर माता पिता से न बनी और यह अलग होगया । अस दिन जब म आनन्द श्रेष्ठी के यहां भोजन करने गया तब यह भी वहीं खड़ा था । श्रेष्ठी ने जिस आदर से मुझे भोजन कराया उससे इसने मुझे कोई बड़ा महात्मा समझा और शाम को मेरे पास आकर बोला- गुरुदेव, मैं आपका शिष्य होता हूँ । मैंने न 'हां' कहा न 'ना' जब तक मैंने सत्य का पूर्ण दर्शन नहीं पाया है तब तक किसी को शिष्य बनाने से क्या लाभ ? पर यह मेरे पास रहने
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लगा ।