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महावीर का अन्तस्तल
६.१३१
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है उसका कारण गोशाल का भोलापन नहीं है किन्तु असंयम है। अपने अज्ञान को छिपाने के लिये एक छल है छद्म है । जो इस प्रकार छलछद्म कर सकता है वह छद्मस्थ अज्ञानी तो कहा जासकता है पर भोला नहीं कहा जासकता। उदम एक बड़ी भारी चालाकी है। .
गोशाल में अज्ञान होता तो उसे दूर किया जासकता था पर उसमें एक प्रकार का अहंकार है और उसे चरितार्थ करने के लिये वह छद्म का सहारा लेरहा है इसलिये उसे समझाना व्यर्थ है।
मुझे आशा नहीं कि गोशाल सत्य के दर्शन कर सकेगा फिर भी यदि वह मेरे साथ रहता है तो उसे भगाऊंगा नहीं, कभी न कभी वह स्वयं चला जायगा। अगर संगति से सुधर गया तो यह अच्छा ही होगा।
में सोचता हूं नियतिवाद के बीजवपन के लिये मनुष्य की मनोभूमि बड़ी उर्वर है। सम्भवतः इसको मिटाया नहीं जासकता, हां उसका समन्वय कर उसका विपापहरण किया जासकता है । भविष्य में मैं यही करूंगा।
६३-उदासीनता की नीति ३जिन्नी ९४३४ इ. सं.
संसार में जो वुगइयाँ हैं उनका विरोध में भी करना चाहता हूं फिर भी मैं इस तरह रहता हूं मानों मैं बुराइयों से भी उदासीन हूं। गोशाल को यह वात पसन्द नहीं है। वह अपने को रोक नहीं सकता। फल अफल अवसर अनवसर का विचार किये बिना वह उखड़ पड़ता है । विरोध की मर्यादा और उचित तरीके का भी विवेक उसे नहीं रहता । फल यह होता है कि वुराई मिटने के बदले बदजाती है।