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महावीर का अन्तस्नल
1.१०३
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का विनय करने से उसमें अहंकार जाता है, वह सत्य का अपमान करने को तैयार हो जाता है. सत्य को ग्रहण करने की उसकी क्षमता नष्ट हो जाती है, वह असत्य में सन्तोप का अनुभव करने लगता है।
- चौथी बात यह कि कम से कम बोलना । अत्यावश्यक होने पर या जिम्ली की प्रेरणा पाने पर ही बोलना । । - पांचवीं बात यह कि हाथ ही आहार लना । पात्रमें याहार लेने से. पात्र लटकाये रहने से, झंझट बढ़ती है या जिसके यहां भोजन कगे उसे पात्र के लिये परेशान होना पड़ता है। फल गतिक शिष्यों को इसके लेिय भी कुछ परेशान होना पड़ा इसलिये भा उनके मन में खेद होगया।
यद्यपि चार्तुमास शुरु होचुका है फिर भी मैंने विहार करना निश्चित कर लिया है। क्योंकि वम विहार के पाप से यहां के क्लेश का पाप अधिक है।
२४ - शूलपाणि यक्ष का मन्दिर १५ इंगा ६४३२ इ. सं.
तापसाश्रम से निकलकर मैं अस्थिक ग्राम म आया। ज्ञात हुआ कि अस्थियों के ढेर पर, यहां शूलपाणि यक्ष का मन्दिर बना हुआ है। इसी मन्दिर में वर्षा ऋतु बिताने का मने विचार किया। गांववालों से अनुमति मांगी तो उनने कहाआपको ठहरने के लिये दूसरा स्थान हम बतादेते हैं, यहां पर ठहरना तो मौत के मुंह में जाना है।
जब मैंने विशेष कारण पूछा तब उन लोगों ने एक कहानी सुनादी । बोले-एक वार धनदेव नामका व्यापारी पांचसौ गाड़ियों में किराना भरकर यहां से निकला। वेगवती नदी में