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महावीर का अन्तस्तल
और जा परिग्रह पाप का प्रतीक है वह पूज्यता का प्रतीक वन बठेगा। बात यह ह कि माधुता का अपमान इसतरह नहीं मंकसकता, वह रुकसकता है साधुसंस्था को पवित्र करने से । आज साधुसंस्थामें चोर उचक्के मोघजीवी दम्भी लोग घुसगयह इसलिये अपरिचित लोग उनका अपमान करें यह स्वाभाविक है। मुझे ऐसे लोगोंकी साधुसंस्था . बनाना है जिनके पास कुबेर की सम्पत्ति और इन्द्र को अप्सराएँ तक सुरक्षित समझी जायँ । उस ग्रामीण ने मुझे चोर समझा इसमें उसका कुछ अपराध नहीं है। साधुसंस्था के वर्तमान रूप का अपगध है । उस रूप को बदलना है, उस क्रांति के लिये भी मेरी साधना है । इसलिये तुम जाओ इन्द्रगोप, निश्चिन्त होकर जाओ ! और देवी मे कहदो कि वे अब मेरी तरफ से निश्चिन्त होजायं निर्मोह होजायं । पारिपार्श्वक भेजकर साधना में वाया न डाल।
इन्द्रगोप ने मुझे प्रणाम किया और आंसू पोंछता हुआ चला गया।
२० रससमभाव ८ सत्येशा ९४३२ ई. सं.
आज कोलाक ग्राम में वेला (दो उपवास) का पारणा होगया । बहुल ब्राह्मण ने बहुत आदर से भोजन कराया। मिष्टान्न की योजना भी उसने की थी। ब्राह्मण के घर इसलिये. '. गया था कि उसके यहां नीरस भोजन मिलेगा पर मिला मिष्टान्न ही । मिष्टान्न देखकर कुछ सन्ताप हुआ। यह एक तरह की निर्वलता ही है । नीरस और सरस में मुझे समभावी बनना है । . . पर यह समभाव अभी स्वाभाविक नहीं है। समभाव के लिये कुछ मनोवल लगाना पड़ता है वह मनोवल न लगाया जाय तो