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समभाव ढीला होना। यही तो कारण है कि मिष्टान्न देवकुछ और के बारे में कुछ सद्भावना मेरी है। इसका तात्पर्य तो यह हुआ कि कोई नो भोजन कराये तो बाहर से समभाव का प्रद कभी भीतर से अष्ट होजाऊंगा, इस प्रकार नियका अपमान करूंगा | अब आशा भरि मेरी रसमभावी बन जाऊंगा |
नियंता
का अन्तस्तल
के लिये रखमभावी होना आवश्यक है । जपान से आधे पापों की जड़ यह नाही सारे पाप समझता चाहिये। जब कि जीवन की दृष्टि से उनका कोई प्रयोग नहीं है मीठा खाने से नहीं सकती. केवता ही बढ़ती है, इसलेसरण की योग्यता भी रहती है । मैं रस-लोलुपता का एक भी के भीतर नहीं रहने देना चाहता ।
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दाता की भावनाओं का आदर करना एक बात है और रस की प्रिय अधिवता का आदर अनादर करना दूसरी बात हैं । मैं दाता की भावना का तो ध्यान रखूंगा पर रस की यता का नहीं।
अत्रि
२१- केशलौंच
१४ सन् २४३२ इ. स.
मेरे घुराले बालों में निष्क्रमण के दिन डाले गये सुगन्धी इसी का असर कई दिन तक बना हुआ था । इससे बड़ा अनर्थ हुआ । प्रमदाएँ उन बगळे विकरों को देखकर विनोद करने लगी कामयाचना करने लगीं । निराश होने पर मुझे नपुंसक कहने लगीं, यौवन को व्यर्थ नष्ट न करने की प्रार्थना करने लगा युवक लोग सुगंधित द्रव्य बनाने की विधि पूछने लगे। इन सब यानों से मुझे बड़ा खेद हुआ।
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