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महावीर का अन्तस्तल
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पाते ही किसान वुरी तरह घबराया और बैलों को भगाता हुआ इस तरह भागा मानों जंगलमें कोई बाघ दिख पड़ा हो ।
मैंने आगन्तुक को पहिचाना और यूछा-इन्द्रगोप, तुम इससमय यहां कैसे आये ?
इन्द्रगोर ने हाथ जोड़ कर कहा-कुमार, मैं तो कल से ही आपके पीछे पीछ हूँ।
मैं- तुम्हें इस काम के लिये किसने नियुक्त किया ?
इन्द्र- सभी ने नियुक्त किया समझो कुमार. हालांकि मुझ से आपके साथ रहने की बात यशोदा देवी ने ही कही है • कल जब आप हम सबको छोड़कर चले आये तर कुछ देर तक हम लोग मूर्ति की तरह खड़ खड़ आपको देखते रहे। जबतक आप दिग्वते रहे तबतक नन्दिवर्धन भैया के साथ सब लोग आपको देखते रहें, पर ज्यों ही आप ओझल हुप, नन्दिवधन भैया बच्चों की तरह फूट फूटकर रोने लगे . हम लोगों ने स्वयं रोते रोते बड़ी कठिनाई में भैया को धैर्य बंधाया और किसी तरह घर की तरफ लौटाया।
ज्यों ही में घर पहुंचा त्यों ही सुपर्णा मेरे पास आई और उसने कहा-छोटी आर्या जी तुम्हें बुलाती है । मैं तुरन्त उनकी सेवा म उपस्थित हुआ । उनका चेहरा देखते ही मैं थक रहगया। थोड़े हा समय में क्या से क्या होगया था। कपाल । उनके अभी भी गीले थे । वोलों - इन्द्रगोप जी, आर्यपुत्र तो मुझे छोड़कर चले गये, अथवा उन्हें क्या दोष दूं? मैंने ही तो उन्हें अनुमति दी थी।
इतना कहते कहते वे विलख विलखकर रोने लगी, मुझम भी इतनी हिम्मत न रही कि उन्हें धीरज बंधाऊ, मुझे भी अपने आंसू पोंछने की पड़ी थी। कुछ समय में स्वयं स्वस्थ