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महावीर का अतन्तल
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और यज्ञ का अर्थ कर रक्खा है उन्हें जीवित जलाकर खाजाना, पर मनुष्यों का जो यज्ञ होता है, उसके स्मरण मात्र से छाती थरी जाती है। अभी दो सप्ताह पहिले की बात है, कृषकों का एक दल हमारे पास आया था, सत्र के पास रजतपिंड थे पर उससे वे बलीवर्द न खरीद सके । सामन्तों ने स्वर्ण पिंड देकर यज्ञ के लिये सब बलीवर्द खरीद लिये । बलीव के बिना वे इसी तरह तड़पते थे जैसे कोई सन्तानहीन व्यक्ति तड़पता है, वलीवर्द के मरने से वे इतने ही दुःखी होते हैं जैसे कोई जवान वेटेके मरनेसे, आज समाजके हजारों घरोंमें इसी तरह का सूतक छाया हुआ है। कृषक पात्नेयोंके उच्छ्वासासे वायुमण्डल तप्त होग
या है, अन्न क विना उनका सौभाग्य दुर्भाग्यसे भी बुरा बना हुआ - है। बलीवदोंके अभावमें कृपकोको, कृषकपत्नियोंको, कृषक-चालकों
को खेत में जाकर स्वयं बलचिर्द बनना पड़ता है । उधर लाखों आदमी जातिमद के शिकार हैं। अभी एक सप्ताह पहिले की बात है-हमारे नगर के बाहर कुछ चांडाल कुटुम्ब रोते चिल्लाते जारहे थे। मालूम हुया कि अमुक मर्यादा के भीतर एक चांडाल क प्रवेश से यज्ञ भ्रष्ट होगया था इसलिये उस चांडाल की हत्या कर दी गई थी। कैसा सुन्दर हृष्ट पुष्ट युवक था! उसके पीछे उसकी विधवा पत्नी, बुडढी मां और तीन वर्ष की छोटी सी बच्ची क्या दहाडै मारमार कर रोरही थी, देखकर पत्थर के भी आंसू निकल सकते थे, पर आजका मनुष्य पत्थर से भी अधिक कठोर है, उसे पिघलाने के लिए किसी महान तपस्वी का तप चाहिये यह योग्यता हम वर्द्धमान कुंमार में ही देखते हैं । माई ! जगत् के उद्धार के लिये तुम्हें भी इस तपस्या में सहायक होना पड़ेगा, वर्द्धमान कुमार को छुट्टी देना होगी। तुम्हारा यह त्याग जगत के महान से महान त्यागों में होगा। तुम दयालु हो माई, लाखों व्यक्तियों की आंखों से निकली जलधारा को देखकर तुम अपने आंखों के आसू भूल जाआगा माई ! .. :: ., , . . ...