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महावी. का अ तम्तल
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अगर मेरा दवर साधारण युद्ध विजय के लिये भी जाता तो गांव__ भर की सीमन्तिानयाँ उसकी आरती उतारती, वह अश्वारूढ़ होता, . उसके रास्ते में फूल विछे होते । पर कल तो मेरा देवर विश्वविनय के लिये जारहा है, लोगों के शरीर पर नहीं आत्माओं पर विजय ने लिये के जारहा है तब उसका समारोह उसके अनुरूप ही होगा।
भैया ने कहा- हां ! हां ! प्यों नहीं होगा ? इस विषय में वर्धमान कुछ नहीं कह सकते । मैं अभी से सब तैयारी कराता हूँ।
यह कहकर भैया जी उठकर चलेगये। मैं भी उठकर चला आया । प्रसाद के आगे रातभर ठक ठक चलती रही, राजपथ स्वच्छ और सजा हुआ करने की धामधूम होती रही। अश्वारोहियों के इधर उधर जाने की आवाजें आती रहीं। माम होता था कि जितनी दूर तक के सामन्तों और प्रजाजनों को खवरं दीजासकती थी, खबर दीगई।
कुछ तो इस तरह रात्रि की निस्तब्धता भंग होने के कारण, कुछ निष्क्रमण के उल्लास के कारण, कुछ आगे के कार्यक्रम के विचार के कारण मुझे नींद नहीं आई। बीच बीच में मैं कक्ष के भीतर चंक्रमण करने लगा, यहां तक कि निशीथ का समय आगया इतने में मैं चौंका । देवी के कक्ष से थपथपाने की आवाज आई। समझगया कि देवी को भी नींद नहीं आरही है और इसीसे प्रियदर्शना भी नहीं सो रही है, उसे सुलाने के लिये वे थपथपारही हैं। - यद्यपि पिछले एक वर्षसे में कुछ अलग सा ही रहता हूँ, एक तरह से मेरा सारा समय अपनी साधना में लगा रहा है फिर भी मिलने जुलने और बात करने का समय तो मिलता ही रहा है। पर आज उनके और मेरे जीवन के ऊपरी मिठनकी अंतिम