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महावीर का अन्तस्तल
~VNAMUNAVA
मैने मुसकराते हुए कहा-तुम्हें भैया से जुदा समझने का पाप नहीं कर सकता भाभी! . मेरी बात सुनकर दासियाँ तक मुसकरा पड़ीं । भाभी ने कहा-दूसरों का मुंह बन्द करना खूब जानते हो देवर !
बीच में बोल उठे भैया । बोले-वर्धमान कुमार सब बातों में असाधारण हैं, अन्यथा किसी भाभी का मुंह. बन्द कर सकने वाला कोई देवर तो आजतक देखा सुना नहीं।
फिर एक हलकी सी मुसकुराहट की लहर सत्र के बीचमे दौड़गई । . . . . . .. इसके बाद भैया ने कुछ गम्भीर हाकर कहाभव. तुम्हें रोक सकने का कोई शस्त्र हमारे पास नहीं रहा वर्धमान ! हम हारे हुए हैं, इसलिये कल तुम जिस तरह विदाई चाहोगे उस तरह तुम्हें विदा करदेना पड़ेगा। __ मैं-इस के लिये कुछ विशेष योजना तो करना नहीं है भैया ! मैं कल तीसरे पहर अपने वस्त्राभूपण गरीबों को दान देकर सिर्फ एक चादर लपेटकर बन की ओर अकेला चल दूंगा।
भाभी ने अचरज से कहा-पैदल ही?
मैं-पैदल नहीं तो क्या ? परिव्राजक साधु क्या हाथी घोड़े शिविकाओं पर घूमा करते हैं ? अब तो मुझे जीवन के अन्त तक पैदल ही भ्रमण करना है ।
मेरी वात सुनकर भाभी क्षणभर को स्तब्ध होगई। फिर अंचल से अपनी आँखें पोंछकर बोली-जीवनभर तुम जैसे चाहे घूमना देवर, पर मैं ऐसी अभागिनी भाभी नहीं बनना चाहती जिसका देवर साधारण भिखारी सा बनकर घर से निकलजाय।