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महावीर का अन्तस्तल
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वे-नहीं, माता जी तो कल मिली थीं । कल मेरे प्रवचन में वे पधारी थीं । प्रवचन के बाद ही उनने मुझे आप का परिचय दिया था और आपसे मिलने का अनुरोध भी किया था।
मैं- अनुरोध करते समय सिर्फ माता जी थीं और कोई नहीं था? .
. वं-नहीं, कुछ दासियाँ भी थीं और दोनों ओर उनकी दोनों पुत्रवधुएँ भी खड़ी थीं।
मैं- मेरी भाभी और यशोदा देवी ?' वे- जी हां! मैं-उनने कुछ नहीं कहा ?
वे-सभी ने कहा। सभी की इच्छा थी कि मैं आप से मिलूं।
हुँ...' कहकर मैं कुछ देर चुप रहा। अभी अभी तक हम लोग खड़े ही थे। मैंने कहा-तव वैठिये.! मैंने अन्हें आसन वताया, मैं भी एक आसन पर बैठ गया। बैठने पर मैंने पूछाकल आपका प्रवचन किस विषय पर हुआ था ?
वे चोले- विषय था योगभोग के समन्वय का, उसमें राजर्षि जनक और श्रीकृष्ण के उपाख्यान कहे गये थे।
मैं- बहुत ही अच्छा और उपयोगी विषय था । वे- क्या आप कर्मयोग को मानते हैं ? मैंने कहा- मानता हूँ।
वे-पर मैने तो सुना है कि आप संन्यास की तैयारी कर रहे हैं।
समझ तो मैं पहिले ही गया था कि शर्माजी क्यों आये