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महावीर का अन्तस्तल
हुए
भी मैंने इस बारे में देवी से एक शब्द भी नहीं कहा। वे जो करती हैं वह बिलकुल स्वाभाविक है, इसलिये इस बात का उल्लेख करके उन्हें लज्जित करने से क्या लाभ ? फिर भी मेरी दिनचर्या बदल गई है । अब मैं दिन में और रात में घण्टों खड़े खड़े ध्यान लगाता हूँ। आज कल सर्वरस भोजन कभी नहीं करता, कभी लवण नहीं लेता तो कभी घी नहीं लेता । कभी गुड़ नहीं, तो कभी खट्टी चीज नहीं, कभी मिर्च नहीं, इस तरह जिल्ला को जीतने का मैं अभ्यास कर रहा हूं । कभी कभी काठ शय्या पर सोता हूं जिसपर किसी तरह का तूल या वस्त्र नहीं होता । यद्यपि इन दिनों काफी ठंड पड़ती है फिर भी अनेक बार मैं रातभर उघड़ा पड़ा रहा हूँ । उपवास भी करता हूं. अधपेट भी रहता हूं ।
VAAMA
देवी इन सब बातों को देखकर बहुत विषण्ण रहती हैं भयवश कुछ कह नहीं पातीं, पर उनके मनकी अशान्ति अनके चेहरे पर खूब पढ़ी जासकती है ।
मैं पढ़ता रहा हूँ, पर मैंने भी स्वयं छेड़ना ठीक नहीं समझा। हां, वे भी इतना करती है कि जिस दिन जो ग्स मैं नहीं खाता वह रस उस दिन वे भी नहीं लेती। मेरी इच्छा हुई कि उन्हें इसप्रकार अनुकरण करने से रोकूँ क्योंकि मैं यह साधना किसी उद्देश से कर रहा हूँ जब कि उनके द्वारा इस साधना का अनुकरण केवल मोह का परिणाम हैं, इसलिये निष्फल है । फिर भी मैंने रोका नहीं, भय था कि रुका हुआ बांध फूट न पड़े । पर आज तीसरे पहर वे मेरे पास आई और मेरी गोद में सिर रखकर फूट फूट कर रोने लगीं, रुका हुआ बांध भरजाने से आप से आप फूट कर वहने लगा ।
थोड़ी देर मैंने कुछ न कहा, स्नेह के साथ उनकी पीठ - पर हाथ फेरता रहा और वे मेरी गोद में आंसू बरसाती रहीं ।