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महावीर का अन्तस्तल
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जीवन विकट परीक्षाओं में से गुजारना होगा। . देवी ने यह ठीक कहा था की मुझे अभ्यास करने की - जरूरत नहीं है । सचमुच नहीं है, पर वास्तविक बात तो
यह है कि मुझे इस अभ्यास में एक तरह का आनन्द आता है, ठीक उसी तरह जिस तरह एक योद्धा को युद्ध में आनन्द भाता है। प्रकृति पर अधिक से अधिक विजय पाना मेरी साध है, यही जिनत्व है और मुझे जिन बनना है । अस्तु ! मेरी गृहतपस्या बाहर से भले ही कम होगई हो पर भीतर तपस्याओं में कोई कमी न आने पायगी।
१५- उलझन १४ चन्नी ९४३१ इ. सं.
माताजी का स्वर्गवास हुए एक वर्ष से भी ऊपर होगया, भाई साहब को जो एक वर्ष का वचन दिया था वह भी बीत चुका । अब भाई साहब से अनुमति मिलने में सन्देह नहीं । पर भाई साहब तो निमित्तमात्र हैं वास्तविक प्रश्न तो देवी का है। इधर एक दो माह से उनके चेहरे पर ऐसी विह्वलता छाई रहती है और चिन्ता के कारण उनको शरीरयष्टि इतनी दुर्वल होगई है कि उनके सामने निष्क्रमण की चर्चा .असमय के गीत से भी भद्दी मालूम होती है। अब तो कठिनाई
यहां तक बढ़गई है कि जीवन की समाज की, कोई चर्चा भी ( नहीं होपाती। थोड़ा सा ही प्रकरण छिड़ते ही वे यह समझकर : अत्यन्त व्याकुल होजाती हैं कि यह सब निष्क्रमण के प्रस्ताव की ही भूमिका है।
मैं अटका देकर नहीं जाना चाहता । मैं तो चाहता हूँ कि. वे किसान किसी तरह इस अप्रिय सत्य को समझे । जगत्कल्याण के लिये मुझे जिस मार्ग पर बढ़ने की जरूरत है उस मार्ग पर वे