________________
महावीर का अन्तस्नल
.
[५७
-
~
ह है कि मा अनुरोध किनिष्क्रमण
१०- सर्वज्ञता की सामग्री ... १९ इंगा ९४३० इतिहास संवत् ..
समाज में क्रांति करने के लिये तथा जगत को इसी जन्म में मोक्ष सुख का अनुभव कराने के लिये वर्षों से मैं निक मण का विचार कर रहा हूँ। पर देवी के अनुरोध के कारण मुझे अपनी इच्छा को दवाना पड़ा है । यह ठीक है कि निष्क्रमण की अत्यन्त आवश्यकता है पर देवी का अनुरोध भी न्यायोचित है। इसलिये सच तो यह है कि मुझे विवाह ही नहीं करना चाहिये था पर जर कर लिया तब असमयमें उनके सिर पर सौभाग्यवेपी बैंवन्य लादना उचित नहीं है । जब तक वे इस त्याग का मर्म न समझ जायँ तब तक मैं बन्धनमुक्त नहीं होसकता। .
पर मैने इस बन्धन के समय का भी काफी सदुपयोग किया है । साधु सन्यासी तो इने गिने व्यक्ति ही वनपाते हैं, उनका जीवन सुधारना या मोक्षसुख का अनुभव कराना कठिन नहीं है पर अगर गृहस्थों का जीवन न सुधारा गया तो तीर्थ रचना का वास्तविक प्रयोजन ही नष्ट होगया । संसार तो मुख्यता से गृहस्थों का ही रहेगा, और साधु भी गृहस्थों के सहारे टिकेगा । ऐसी अवस्था में गृहस्थों की उपेक्षा नहीं की जासकती । मुझे उनकी अवस्था को समझना होगा । उनकी परिस्थिति के अनुसार उन्हें धर्म का मा: बताना होगा । पर यह सव तभी होसकता है जब मैं भीतर से उनकी कठिनाइयों और परिस्थितियों को समझें । .
· यद्यपि देवी के अनुरोध से मुझे रुकना पड़ा है पर उस मकने ने भी काफी लाभ पहुँचाया है । इन दिनों मुझे कौटुम्धिक जीवन की कठिनाइयों और उल्मनों को समझने के काफी अवसर मिले हैं। खैर ! मेरे घर में तो इतनी अल्झने नहीं है क्योंकि