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महावीर का अन्तस्तल
८- सीता और ऊर्मिला के उपाख्यान
१ लुंगी ६४२
इतिहास संवत्
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नगर में कई दिनों से रामलीला होरही है, घर के सब लोग रामलीला देखने जाते हैं, खासकर स्त्री वर्ग । मैं अभी तक नहीं गया | देवी ने एकाधिक बार अनुरोध किया पर में प्रेम से टालता रहा | इन खेल तमाशों में मेरी रुचि नहीं है । पर कल देवी का अनुरोध अत्यधिक था । इतना अधिक कि सुनने कहा कि यदि आप आज भी मेरे साथ रामलीला देखने न गये तो मैं जीवनभर कोई खेल न देखूँगी । अनके इस उन अनुरोध का कोई विशेष कारण होना चाहिये- इतना तो समझ गया था, परं वह क्या था ? यह बात तब न समझ पाया था; खेल देखते देखते समझ गया I
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बात यह हुई कि कल राम के वनवासगमन का दृश्य दिखाया जानेवाला था । वास्तव में दृश्य करुण था । राज्याभिषेक होने के दिन ही राम को वनवास की तैयारी करना पड़ी । वनवास सिर्फ राम को दिया गया था, पर सीतादेवी ने साथ न छोड़ा. वन की विभीषिका उन्हें न डरा सकी, दाम्पत्य में नरनारी तादात्म्य कैसा होसकता है ! इस का बड़ा ही मर्मस्पर्शी
दृश्य था ।
देवी मेरी बगल में कुछ सटकर ही बैठी थी उनकी बगल में भाभी और माताजी थीं । कुछ अधिक कहते सुनने या इंगित करने का अवसर न था । पर जब सीतादेवी के अनुरोध या प्रेम के आगे रामको हार मानना पड़ी, सीतादेवी को बन में अपने साथ रहने की अनुमति देना पड़ी तत्र देवी ने धीरे से मेरी जांघ में चिकौटी भरी ।