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समर्पण
महात्मा महावीर स्वामी की सेवा में
महात्मन्
आपकी कलम से आपका जविन चरित्र लिखाना, और आपके अन्तस्तल का चित्रण करना कहालायगी तो धृष्टता ही, पर वह धृष्टता सिर्फ कहलायगी वास्तव में धृष्टता होगी नहीं । क्योंकि दुनिया को चाहे पता हो चाहे न हो पर आपको पता है कि मैंने कितनी दिशाओं से आपको फोकस मिला मिलाकर देखा है ।
जो आपसे बहुत दूर हैं उन्हें आप या तो दिखते ही नहीं या धुंधले दिखते हैं, जो बहुत पास हैं उनका फोकस ही नहीं मिलता, इसलिये वे भी आपको नहीं देख पाते। एक दिन मैं भी ऐसे ही पास था तब मेरा भी फोकस नहीं मिलता था पर सत्येश्वर के दर्शन के बाद फोकस मिला, मैं ठीक स्थानपर पहुंचा और आपको देख सका, इसी का परिणाम है कि यह अन्तस्तल लिख सका हूं ।
सत्यलोक में जब आपके दर्शन हुए तब मेरी बातों से आप काफी खुश हुए थे। उस भरोसे मैं कह सकता हूं कि इस अन्तस्तल से भी आप खुश होंगे। इसलिये मुझे इस बात की चिन्ता नहीं है कि इससे दुनिया खुश होगी या नाखुश ।
अन्तस्तल लिखा तो गया है दुनिया के हाथ में समर्पण करने के लिये, पर मालूम नहीं दुनिया इसे स्वीकार करेगी या नहीं ? इसलिये आपकी ही सेवा में इसे समर्पित कर रहा हूं । अब आप ही इसे प्रसाद के रूप में बांट दें ।
४ टुंगी ११९५३ इ. सं.
विनीत सत्यभक्त
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