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महावीर का अन्तस्तल
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की सफाई से ही क्या होता है ? अपर नगर की अन्य वीथियण आर एथ मलमूत्र से भरे रहे तो ऐसे नगर में रहकर तो गमनागमन भी नहीं हो सकेगा, इसलिये वे चाहते हैं कि सारा नगर स्वच्छ हो। निःसन्देह यह सब वे अपने लिये चाहते हैं, पर उनका स्वार्थ सारे नगर का स्वार्थ सिद्ध होजाता है । यही तो परकल्याण में आत्मकल्याण है । और ऐसा ही यात्मकल्याण में करना चाहता हूँ।
देवी थोड़ी देर तक मौन रहीं फिर धीरे धीरे उनकी आंख भींगों और पलकों पर मोती भी बने। .... । . . . : मैंने अत्यन्त स्नेह के साथ देवी के सिरपर हाथ रक्खा और उनका सिर मेरी छाती पर दुल पड़ा। मन बहुत ही प्रेमल स्वर में कहा-देवी, तुम इतनी घबराती हो! जरा उस अमरता का ध्यान तो करो जो जगत कल्याण के लिये सर्वस्व समर्पण करनेवालों और उनके सम्बन्धियों को मिलती है। फिर आज तो कुछ मैं कर ही नहीं रहा हूँ। विश्वहित के लिये निष्क्रमण का दिन तो काफी दूर मालूम होता है । माता पिता और तुम्हारी अनुमति के बिना मैं निष्क्रमण कभी नहीं करूंगा। फिर भी एक वात तुमसे कहता हूं। तुम क्षत्राणी हो, हर एक क्षत्राणी के पिता पुत्र पात युद्धक्षेत्र में जाते रहते हैं और क्षत्राणी आरती उतार कर अन्हें विदा करती है। युद्धक्षेत्र में विदा करने के लिये किस प्रकार कठोर हृदय की आवश्यकता है यह कहना यावश्यक नहीं, और वही हृदय क्षत्राणियों को मिला होता है फिर तुम्हारे हृदय में इतनी कातरता क्यों ?
देवी ने कहा-देव, क्षत्राणी विदाई की आरती उतारती है पर उस समय भीतर ही भीतर जो वह अपने आंसुओं को पीजाती है वह केवल इसी आशा पर कि फिर किसी दिन वह स्वागत की आरती भी उतारेगी, पर निऋष्मण में यह आशा कहां?