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महावीर का अन्तस्तल
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बारे में तुम्हारा कोई कर्तव्य नहीं है ?
मैं- मैं इसे अस्वीकार नहीं करता माँ, पर आशा करता हूं तुम मुझे जगत्कल्याण के लिये समर्पित करने की उदारता दिखाओगी? साथ ही मुझे यह भी विश्वास है कि मेरे न रहने पर भी भाई नन्दीवर्धन तुम्हारी सेवा में किसी तरह की कोई कमी न रखेंगे ।
माताजी जरा उत्तेजित सी होगई और बोलीं- हां! हां ! कमी क्या होगी ? रोटी मिल ही जायगी, पेट भर ही जायगा । पर क्यों वर्धमान, क्या जीवन का सारा आनन्द पेट में ही रहता है ? मन से कोई सम्बन्ध नहीं ?
मैं ऐसा तो मैं कैसे कह सकता है ? मन न भरे तां पेट भरने से क्या होगा ?
मां - तब क्या तुम सोचते हो कि जिसका जवान बेटा बिछुड़ जायगा उस मां का मन भरेगा ? अरे ! मन भरने की बात जाने दो, पर सुहाग तो नारी का सबसे बड़ा धन है पर जिसकी पुत्रवधू विधवा न होनेपर भी विधवा की तरह जीवन वितायगी वह किस मुँह से अपने सुहाग का अनुभव करेगी ? यशोदा मुँह से कुछ कहे या न कहे पर सामने आते ही उसकी आंखें मुझसे पूछेंगी क्यों मां. इसी दिन के लिये तुमने मुझे अपनी पुत्रवधू ? बोल तो बेटा, उस समय में असे क्या उत्तर दूंगी ? ४. बनाया था और कैसे उसे मुंह दिखा सकूँगी ?
मैं चुप रहा ।
मां ने फिर अत्यन्त करुण स्वर में कहा- तेरे जाने पर सारा जग उसकी हँसी उड़ाया ? असके सुहाग चिन्ह उसे पूछेंगे- अब हमारा बोझ किसलिये ?