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महावीर का अन्तस्तल
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अब तू ही बता, उसकी यह दुर्दशा देखकर मुझे कैसे तो नींद आयगी ! कैसे अन्न निगला जायगा ? आंसू बहाते वहाते आंखों के आंसू भी तो चुक जायेंगे फिर इन सूखी और फटी आंखों से कैसे दुनिया देख सकूंगी ? क्या जीवन के अन्त में मुझे यही नरक यातना सहना पड़ेगी ? इसलिये: बेटा ! तुझे करना हो सो कर ! आध्यात्मिक जगत् का महल खड़ा करें, पर वह सब मेरी चिता पर । मेरी चिता या मेरी लाश सब बोझ उठालेगी, पर इस बूढ़ी मां में इतनी शक्ति नहीं है बेटा ! मेरे जीवन भर तो तुझे घर में ही रहना पड़ेगा ।
यह कहकर मां ने काफी जोर से मेरा हाथ पकड़ लिया मानों वे कोट्टपाल हों और मैं कैदी ।
फिर वे बोलीं- कहो ! कहो बेटा ! क्या इस बुढ़िया मां का कमजोर हाथ मकझोरना चाहते हो ?
ra मैं क्या कहता ? सांकल तोड़ सकता था, पर वात्सल्यमयी मां का हाथ छुड़ाने की शक्ति कहां से लाता ? मां का हाथ झकझोरने के लिये मनुष्यता का बलिदान चाहिये, पशुता का उन्माद चाहिये । वह मुझ में है नहीं, आ भी नहीं सकता । इसलिये मैंने कहा- तुम्हारे हाथ को कोरने की शक्ति मुझमें नहीं है मां, इसलिये मैं तुम्हें वचन देता हूं कि तुम्हारे जीवनभर मैं निष्क्रमण न करूंगा ।.
मां ने झपटकर मुझे छाती से लगा लिया, मेरे सिर को चार बार चूमा और इसप्रकार फूट फूट कर रोने लगीं कि मानों मैं वर्षो से कहीं गुमा हुआ था और आज ही मिलगया हूं ।
इसप्रकार एक अनिश्चित काल के लिये निष्क्रमण रुक गया है । अब घर में ही अभ्यास करना है !