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। महावीर का अन्तस्तल
" अर्थान - जैन तीर्थंकर महावीर की डायरी
१- अशान्ति १७ तुपर्ण ९४२१७ इतिहास संबन
आकाश में आज बादल लागये है, बिजली चमकमी. - बादलों का रंग देखकर कहा जासकता है कि अनही मानी ।
हवा में कुछ तेजी है, ठंडक भी विश्चय ही कही पानी जमा है, आकाश में आज काफी हलचल है । निःसन्दा पर मरन होगी, पानी बरसेगा, ताप घटेगा. धरती में अंकर निकलेगा धनी हरी साड़ी पाहनकर अपना श्रृंगार करेगी, बादलों की लाल सफल होगी।
पर यह कितने अचरज और लज्जा को पानी हृदयाकाश में इससे भी अधिक कल वली. पर न शनी र रहा है, न ताप घट रहा है. न अंकुर निकल रोकन उससे दुनिया की कुछ शोभा बदगी .
जगत् दुःखी है. इसलिय नारी दि. विनयापन नहीं है, जीवित रहने टायक पेट भरने लायक मां .. कमी है तो सिर्फ इस बात की कि सगा भग्न लापर. जग कुछ नहीं है। कारण यह नहीं कि जगत शुद्र या पंगा t. कारण यह कि तृष्णा का मुंह विज्ञान है. उमा गुट सीन