________________
महावीर का अन्तत्तल
२- भीगी आंखें
६ जिन्नी २४२८ इ.सं. - यशोदादेवी की भीगी आंखें मेरी आंखों के सामने से
नहीं हटती । दानया के दुःख और अन्धरशाही देखकर मन मन - वचन तो पहिले स हो था पर कल शिवक्रमी की जो दर्दना । देखी और झुस दुर्दशा को दूर करने में अपने वर्तमान साधना : की अक्षमता का अनुभव किया उससे गनम का ननी मान : असाधारण होगई । मुझे वचन देखकर यांनादवांको मंचनी
मुझ से भी अधिक बढ़ गई। उनने बार बार मुझन मन चंनी का कारण पूछा, पर मैं बताता क्या ? म मन ही मन बहाना चाया कि मेरा वेचनी के इस कारण पर ना नव दल देग। साधारण जन का स्वभाव ता यह है कि उसपर जय कोई संकट खाता है तब वह बेचन हाता है । दृसन के दुख में का. लिक सहानुभूति प्रगट कर सकता है पर सहानुभूति कर नहीं सकता दिन रात बेचैन रहना तो दूर की बात है । नयागेनी क्या समझे ? इसलिये अपनी वेचनी की बात यशोदादनी में भी कहने का मन नहीं चाहता था। पर उनक अन्याना से मरमर बात कहना पड़ी। ... दुनियामें फैलीहुई तृष्णा अनाति. हिवा. पांगता जातिमद यादि की बात जय मन की नव दवा सिर कामद सुनती रहीं। फिर सुनने कहा- देव, आपकी रन्गा माया; और ऐसे करूणाशालो पुगर की पनी हार का मामाग्य. फिर भी मैं प्रार्थना करती हूं कि आप वचन न हों। हमारे दुरनी होनेसे हमारा लुटा हुआ नुख संसार में न जायगा धन लुटने से धन घट सकता ह पर सुख लुटन र सुरनीस्ट सकता।