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अमीर है यहाँ पर ? दुनिया में दो ही तत्त्व हैं एक ग़रीब, दूसरा ग़रीबनवाज़ | तीसरा शब्द दुनिया के लोगों द्वारा पैदा किए गए शब्द हैं। गरीब अपन हैं और अपना रखवाला ऊपरवाला ग़रीबनवाज़। जब हम खुद ही सोच लें कि हम सारे लोग ही गरीब हैं, एक ऊपरवाला ही मालिक है, फिर किस बात का रहेगा अभिमान ।
कहते हैं : एक फ़क़ीर सम्राट् अक़बर के पास कुछ माँगने के उद्देश्य से पहुँचा। उसने देखा कि अक़बर नमाज़ अदा कर रहा है और खुदा के सामने झोली फैलाकर माँग रहा है कि हे खुदा ! मेरी झोली भरी रखना । राज दरबार को ठाठ से चलाए रखना। फ़क़ीर ने दूर से सुना और सोचा- ओह ! तो यह भी भिखारी है। मैंने सोचा मैं ही भिखारी हूँ पर यहाँ आने पर अहसास हुआ कि यह भी मेरी तरह भिखारी है। जब इसको और मुझे देने वाला एक ही है तो मैं इससे क्यों माँगूँ। उसी से माँगूँ जो सबको देने वाला है। जो इसकी झोली भरता है वह मेरी भी झोली भर देगा । यही सोचकर फ़क़ीर निकलने ही लगा कि तभी सम्राट् की उस पर नज़र पड़ी। सम्राट ने फ़क़ीर को पुकारा कि अरे भाई जाते कहाँ हो, मेरा नियम है कि जैसे ही नमाज़ अदा करके खड़ा होता हूँ तो जो भी मेरे दरबार में पहला याचक आता है मैं उसकी झोली भर देता हूँ | आओ आओ, तुम खाली हाथ मत लौटो, मेरी नमाज़ पूरी हो गई है, आ जाओ मैं तुम्हारी झोली भर दूँगा । फ़क़ीर ने कहा अब इसकी आवश्यकता नहीं है । अक़बर ने पूछा - क्यों ? फ़क़ीर ने कहा अब समझ में आ गया, जब ऊपर वाला तुम्हारी झोली भर सकता है तब क्या वही मेरी झोली नहीं भरेगा ?
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यह मार्ग उन फ़क़ीरों का मार्ग है जो जीत चुके हैं, जो अब दूसरों के आगे हाथ नहीं फैलाते । हाथ फैलाना होगा तो ऊपर वाले के आगे ही फैलाएँगे । ईश्वर ने हम सब लोगों को देने के लिए बनाया है लेने के लिए नहीं । इन्सान हैं तो इन्सानियत की इबादत करें, इन्सानियत की इज़्ज़त करें । इन्सानियत के हाथ माँगने के लिए नहीं, देने के लिए हों । हमारे दिल में दीन-दुखियों को मदद करने की भावना हो ।
हम सब किसी कार्य की शुरुआत करते हैं तो सफलता एक दिन में नहीं मिल जाती। इसके लिए सतत प्रयास और श्रम करना होता है। एक दिन में कोई
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