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रायचंद्रजैनशास्त्रमाला ।
श्रीनेमिचंद्राय नमः अथ छायासंक्षिप्तहिंदीभाषासहितः
लब्धिसारः
(क्षपणासारगर्भितः)
मंगलाचरण । दोहा-सम्यग्दर्शन चरन गुन, पाय कुकर्मक्षिपाय ।
केवलज्ञान उपाय प्रभु, भए भजौं शिवराय ॥१॥ लब्धिसारकों पायकें, करिके क्षपणासार ।
हो है प्रवचनसारसों, समयसार अविकार ॥२॥ पहले श्री गोमटसार शास्त्रमें जीवकांड कर्मकांड अधिकारोंसे जीव और कर्मका स्वरूप दिखलाया उसको यथार्थ जानकर मोक्षमार्गमें प्रवर्त होना चाहिये क्योंकि आत्माका हित मोक्ष है । मोक्षके मार्ग ( उपाय ) दर्शन व चारित्र हैं और सम्यक् ज्ञान भी है परंतु यहां गुणस्थानके क्रममें सम्यग्ज्ञानकी गौणता है इसीलिये मुख्यतासे दर्शन चारित्रकी ही लब्धि ( प्राप्ति ) का उपाय बतलाते हुए प्रथम अपने इष्ट देवको नमस्कार करते हैं:
सिद्धे जिणिंदचंदे आयरिय उवज्झाय साहुगणे । वंदिय सम्मइंसण-चरित्तलद्धिं परूवेमो ॥१॥ सिद्धान् जिनेंद्रचंद्रान् आचार्योपाध्यायसाधुगणानू ।
वंदित्वा सम्यग्दर्शनचारित्रलब्धी प्ररूपयामः ॥ १ ॥ अर्थ-सिद्ध अर्हत आचार्य उपाध्याय और साधुओंको नमस्कारकर हम सम्यग्दर्शनलब्धि और चारित्रलब्धि-इन दोनोंका खरूप कहेंगे। आगे दर्शनलब्धिके कथनमें पहले प्रथमोपशम सम्यक्त्व होनेकी विधि कहते हैं;
चद्गदिमिच्छो सपणी पुण्णो गब्भजविसुद्धसागारो। पढमुवसमं स गिण्हदि पंचमवरलद्धिचरिमम्हि ॥२॥