Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 14
________________ और ४. अन्तराय। ये कर्म, जीव के क्रम से ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य गुण को घातते हैं। १६. ' प्रश्न : अनुजीवी गुण किसे कहते हैं ? उत्तर : जिनके रहते हुए जीव का जीवत्व सुरक्षित रहे उन्हें अनुजीवी गुण कहते हैं जैसे ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य । जिस प्रकार उष्णता के रहने पर अग्नि का अग्नित्व सुरक्षित रहता है उसी प्रकार ज्ञान दर्शनादि गुणों के रहते हुए जीव का जीवत्व सुरक्षित रहता है ? २०. प्रश्न : अघाति कर्म किसे कहते हैं और उसके कितने भेद हैं ? उत्तर : जो जीव के अनुजीवी गुणों का घात न करें उन्हें अघाति कर्म कहते हैं। इनके चार भेद हैं- १. वेदनीय २. आयु ३. नाम और ४. गोत्र। ये कर्म क्रम से जीव के अव्याबाधत्व, अवगाहनत्व, सूक्ष्मत्व और अगुरुलघुत्व गुणों का घात करते हैं। ये गुण जीव के प्रतिजीवी गुण कहलाते हैं। . २१. प्रश्न : ज्ञानावरण कर्म किसे कहते हैं ?. उत्तर : लो जीव के ज्ञान गुण को प्रकट न होने दे उसे ज्ञानावरण

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