Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 38
________________ स्थानों पर यानी अपने स्वरूप से स्थिर रहें उसे स्थिर नामकर्म कहते हैं। ११३. प्रश्न : अस्थिर नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिसके उदय से शरीर के धातु उपधातु स्थिर न रहें अर्थात् चलायमान होते रहें उसे अस्थिर नामकर्म कहते ११४. प्रश्न : आदेय नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिसके उदय से शरीर, विशिष्ट कांति से सहित होता है उसे आदेय नामकर्म कहते हैं। ११५. प्रश्न : अनादेय नामकर्म किसे कहते हैं ? १. अर्थात इस अस्थिर नामकर्म के उदय से रसादिकों का आगे की धातुओं रूप से परिणमन होता है। (यल १३/३६१) यानी रस से रका रूप परिणमन, रका से मांस रूप, मांस से मेदे रूप, मेदे से हड्डी रूप, हड्डी से मज्जे रूप तथा मज्जे से वीर्यरूप परिणमन (बदलन) होता है। इस उक्त प्रकार से बदलन जिस कर्म के उदय से होता है, वह अस्थिर नामकर्म कहा गया है। एदि अस्थिर नामकर्म न हो तो रस, रस रूप ही रह जाय, आगे की मातुओं रूप परिणत न होगा, इत्यादि। (धवल ६/६३.६४) राजवारतेक (८/११, पा० ३४) में लिखा है कि जिसके उदय से दुष्कर उपवासादि करने पर भी अंग-उपांग (शरीर) स्थिर बने रहते हैं- कृश नहीं होते वाह स्थिर नामकम है तथा जिसके कारण एक उपावरा से या साधारण शीत उष्ण असद्धि लगने से ही शरीर कम हो नाप वह अस्थिर नामकर्म है। 70 वा० ८/29/३४-३५ पृ०1७६ व ७५५!! (३३)

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