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गुणस्थानों में कषाय और योग-दो प्रत्यय है। उपशान्त मोह से लेकर सयोगकेवली तक तीन गुणस्थानों में एक योग ही प्रत्यय रहता है। अयोग केवली नामक चौदहवें गुणस्थान में बन्ध का एक भी प्रत्यय नहीं है अतः वहाँ पूर्ण रूप से अबन्ध रहता है, अर्थात् एक भी प्रकृति का
बन्ध नहीं होता। २४७. प्रश्न : उपर्युक्त चार प्रत्ययों के उत्तर मे कितने है ? उत्तर : मिथ्यात्व के ५, अविरति के १२, कषय के २५ और योग
के १५, इस तरह सब मिलाकर प्रत्यय के ५७ उत्तर भेद हैं। एकान्त, विपरीत, संशय, अज्ञान और वैनयिक के भेद से मिथ्यात्व के ५ भेद हैं। षट्कायिक जीवों की हिंसा से विरति न होने के कारण प्राणि- अविरति के और छह इन्द्रियों के विषयों से विरति न होने के कारण इन्द्रिय अविरति के ६, इस तरह अविरति के १२ भेद है। अनन्तानुबन्धी क्रोध मान माया, लोम आदि १६ कषाय और हास्यादि ६ नो कषाय मिलकर कषाय के २५ भेद हैं। काय योग के ७, बचनयोग के ४ और मनोयोग के ४, इस तरह योग के १५ भेद हैं। इन ५७ प्रत्ययों की गुणस्थानों में योजना कर लेनी चाहिये।
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