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उत्तर : दो हजार कोश चौड़े और दो हजार कोश गहरे गोल गड्ढे में मेढ़े के ऐसे बाल को जिनका कैंची से दूसरा भाग न हो सके धांस-धांस कर भरे और फिर सौ सौ वर्ष बाद
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एक एक बाल निकाले। ऐसा करने पर जितने वर्षों में सब बाल निकल जावें उतने वर्षों के जितने समय हों उतने समयों को व्यवहार पल्य कहते हैं। व्यवहार पल्य से असंख्यात गुणा उद्धार पल्य होता है और उद्धार पल्य से असंख्यात गुणा अन्द्धा पल्य होता है। दस कोड़ा कोड़ी सागर का एक उत्सर्पिणी और इतने ही वर्षों का एक अवसर्पिणी काल होता है। दोनों ही मिलकर बीस कोड़ाकोड़ी सागर का एक कल्प काल होता है।
२६४. प्रश्न: उत्सर्पिणी काल किसे कहते हैं ?
उत्तर: जिसमें जीवों की आयु बल, बुद्धि तथा शरीर की अवगाहना आदि में क्रम से वृद्धि होती रहे उसे उत्सर्पिणी काल कहते हैं।
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२६५. प्रश्न उत्सर्पिणी काल के कितने भेद हैं ?
उत्तर : छह हैं- १. अति दुःषमा ( इक्कीस हजार वर्ष), २. दुःषमा ( इक्कीस हजार वर्ष), ३. दुःषम सुषमा ( बयालीस हजार वर्ष कम एक कोड़ा कोड़ी सागर), ४. सुषम दुःषमा ( २ कोड़ाकोड़ी सागर ) ५. सुषमा (३ कोड़ाकोड़ी सागर )
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