Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 112
________________ प्रबद्ध का द्रव्य आगामी समयों में गुणित रूप से हीन हीन होता हुआ खिरता है। यह हानिरूप क्रम ही गुण हानि है। जैसे किसी जीव ने एक समय में ६३०० परमाणुओं के समूह रूप समय प्रबद्ध' का बन्ध किया और उसमें ४८ समय की स्थिति पड़ी। उसमें गुण हानियों की समूह रूप नाना गुग हानि ६ हुई। उनमें से प्रथम गुण हानि में ३२८०, द्वितीय गुण हानि में १६००, तृतीय गुण हानि में ८००, चतुर्थ गुणहानि में ४००, पंचम गुणहानि में २०० और षष्ठम् गुणहानि में १०० कर्म परमाणु खिरते हैं। १२६८. प्रश्न : गुण हानि आयाम किसे कहते हैं ? उधर : एक गुण हानि के समयों के विस्तार को गुण हानि आयाम कहते हैं जैसे ऊपर के दृष्टान्त में समय प्रबद्ध की स्थिति ४८ समय थी और उसमें ६ गुण हानियाँ थीं, अतः ४८ में ६ का भाग देने से एक गुण हानि का आयाम (विस्तार) ८ समय हुआ। यही गुण हानि आयाम कहलाता समय प्रबद्ध का वास्तविक प्रमाण सिन्द्रों के अनन्तवें भाग और अभव्यराशि से अनन्न गुणित होता है। यहां दृष्टान्त के लिये ६३०० का कल्पित किया गया है। (१०७)

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