Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

Previous | Next

Page 115
________________ है। इसी प्रकार द्वितीयादि गुण हानियों के प्रत्येक समय का द्रव्य निकाल लेना चाहिये। २७४. प्रश्न: चय किसे कहते हैं ? उत्तर : श्रेणी व्यवहार गणित में समान हानि या समान वृद्धि के परिमाण को यय कहते हैं । २७५ प्रश्न इस प्रकरण में चय का परिमाण निकालने की क्या रीति हैं ? . उत्तर : निषेकहार में एक अधिक गुण हानि आयाम का परिमाण जोड़कर आधा करने से जो लब्ध आवे उसमें गुण हानि आयाम से गुणा करें, इस प्रकार गुणा करने से जो गुणनफल हो उसका भाग विवक्षित गुण हानि के द्रव्य में देने से विवक्षित गुण हानि के चय का परिमाण निकलता है। जैसे निषेकहार १६ में एक अधिक गुणहानि आयाम को जोड़ने से २५ हुए। उसके आधे साढ़े १२ को गुण हानि आयाम प से गुणा करने पर १०० होते हैं इसका अपनी अपनी विवश्चित गुण हानि के द्रव्य में भाग देने से प्रथमादि गुणहानियों का क्रम से ३२, १६, ८, ४, २, १ चय निकलता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125