Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 57
________________ और असातावेदनीय आदि। इनमें जब एक का बन्ध होता है तब दूसरी का नहीं होता। तीर्थकर, आहारक युगल तथा चार आस, इन सात प्रकृतियों के मारकर ब-धोने का काल अन्तर्मुहूर्त है और शेष का एक समय।। १५२. प्रश्न : बन्ध, उदय और सत्त्व योग्य प्रकृतियां कितनी हैं? उत्तर : आचार्यों ने बन्ध और उदय का वर्णन अभेद विवक्षा से किया है और सत्त्व का भेद विवक्षा से। अभेद्र विवक्षा में पाँच बन्धन, पाँच संघात तथा वर्णादिक की सोलह और सम्यग्मिथ्यात्व एवं सम्यक्त्व-प्रकृति इस प्रकार अट्ठाईस प्रकृतियों के कम होने से १२० प्रकृतियाँ बन्ध योग्य हैं। सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृति का उदय आता है . इसलिये उदय योग्य १२२ प्रकृतियाँ हैं । सम्यग्मिथ्यात्व का उदय तृतीय गुणस्थान में और सम्यक्त्व प्रकृति का उदय चतुर्थ से लेकर सप्तम् गुणस्थान तक होता है। सत्त्व ५+६+२+२८+४+६३+२+५=१४८ प्रकृतियों का होता १५३. प्रश्न : बन्ध त्रिभंगी किसे कहते हैं ? उत्तर : बन्ध व्युछिछत्ति, बन्ध और अबन्ध को बन्ध त्रिभंगी कहते हैं। इन तीनों का गुणस्थानों और मार्गणाओं में वर्णन

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