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क्षपक श्रेणी वाले मनुष्य के नौ भागों में क्रम से १६,८, १, १, ६, १, १, १ और १ प्रकृति का क्षय होने से ३६ प्रकृतियों का क्षय हो जाता है अतः दशम् गुणस्थान में १०२ की सत्ता होती है। दशम् के अन्त में सूक्ष्म लोभ का भी क्षय हो जाने से बारहवें गुणस्थान में १०१ की सत्ता रहती है। बारहवें गुणस्थान में १६ की सत्त्व व्युच्छित्ति होने से तेरहवें गुणस्थान में ८५ की सत्ता होती है। तेरहवें गुणस्थान में किसी प्रकृति का क्षय नहीं होता इसलिये चौदहवें गुणस्थान में भी ८५ की ही सत्ता रहती है । पश्चात् उपान्त्य समय में ७३ और अन्त्य समय में १२ प्रकृतियों का क्षय हो जाने से आत्मा सर्व कर्म विप्रमुक्त हो जाती है । उपशम श्रेणी वाला यदि क्षायिक सम्यग्दृष्टि है और नवीन आयु का बन्ध कर चुका है तो उसके १३८+१=१३६ की सत्ता उपशान्त मोह गुणस्थान तक रहेगी ।' यदि अबद्धायुष्क है तो १३८ की सत्ता होगी । यदि द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टि है तो अनन्तानुबन्धी चतुष्क की विसंयोजना होने से १४ की सत्ता रहती है ।
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१. देखो - गो.क. पृष्ठ ३५७ सम्पा. व. पं. रतनचंद मुख्तार ।
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